Bhramar ka 'Dard' aur 'Darpan'
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“जीना भी तो एक कला है”
जीना भी तो एक कला है,
बिखरी मोटी कोई तूलिका,
लेकर काला मैला रंग डालो,
या पैनी कुछ -नई भूमिका,
सोच-उषा निशा को रच डालो,
खिले कमल फूलों की घाटी,
चिड़िया- सूरज रंग डालो,
स्याह निशा में टिमटिम तारे,
बदली – घूंघट -चाँद ,
वहीँ तुम रच डालो,
नंगे भूखे धूल धूसरित ,
लड़ते बच्चे रच डालो,
या चूड़ामणि पैजनी पहने,
ठुमकि चलत रामा कृष्णा रच डालो,
तुम चाहो तो कोई पूतना -सुरसा-
आंको -या फिर सीता सावित्री को,
आंधी उजाड़ बाढ़ बवंडर,
या मोर नाचता रिमझिम सावन ,
नाव नदी -खेती किसान ,
गाल फुलाए पीले मेढक कछुआ,
धोबी -कछुआ- मुनुआ ललुआ
-हँसते बच्चे रच डालो,
केशरिया धानी या सादा,
पूरा रंग या आधा.
१२.५.२०१० सुरेंद्रशुक्लाभ्रमर
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