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“जीना भी तो एक कला है”-Bhramarshukla-Hindi Poem-Kavita

Bhramar ka 'Dard' aur 'Darpan'
Bhramar ka 'Dard' aur 'Darpan'
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“जीना भी तो एक कला है”

 

जीना भी तो एक कला है,

बिखरी मोटी कोई तूलिका,

लेकर काला मैला रंग डालो,

या पैनी कुछ -नई भूमिका,

सोच-उषा निशा को रच डालो,

खिले कमल फूलों की घाटी,

चिड़िया- सूरज रंग डालो,

स्याह निशा में टिमटिम तारे,

बदली – घूंघट -चाँद ,

वहीँ तुम रच डालो,

नंगे भूखे धूल धूसरित ,

लड़ते बच्चे रच डालो,

या चूड़ामणि पैजनी पहने,

ठुमकि चलत रामा कृष्णा रच डालो,

तुम चाहो तो कोई पूतना -सुरसा-

आंको -या फिर सीता सावित्री को,

आंधी उजाड़ बाढ़ बवंडर,

या मोर नाचता रिमझिम सावन ,

नाव नदी -खेती किसान ,

गाल फुलाए पीले मेढक कछुआ,

धोबी -कछुआ- मुनुआ ललुआ

 -हँसते बच्चे रच डालो,

केशरिया धानी  या सादा,

पूरा रंग या आधा.

 

१२.५.२०१० सुरेंद्रशुक्लाभ्रमर

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