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“भौंरा हूँ मुक्त फिरूं ” -भ्रमर-कविता (हिंदी पोएम)
भौंरा हूँ मुक्त फिरूं
इधर – उधर डोलूँ
उड़ता फिरूं मै
जग को टटोलूं
कांटे को छोड़ बढूँ
कली – कली
फूल – फूल.
गाँव को देखा
प्यारा ‘झरोखा’ है
घर – संसार का
अपनों के प्यार का
पलते दुलार का
अम्मा से चाची का
दादी से नानी का
ननदी से भाउज का
बाबा और ताऊ का
कितना प्रसार है-
“नातों ” का
दूर – दूर.
नदिया – तालाब का
खेत-वन – बाग़का
“पाथर” – मज़ार का
पीपल और बेल
के –‘जादुई’-पात का
कैसा जुडाव है
होली – दिवाली का
सखी – सहेली का
दुल्हन – नवेली का
“लक्ष्मी” सा प्यार है
दिल में भरा
कूट – कूट.
‘अलबेली’ -बेल का
छुपा – छुपी खेल का
गाँव के मेले का
‘ सावन ‘ के झूले का
कजरी से सोहर का
बेगम से ‘ सौहर’ का
पायल से बिंदिया का
मेहनत से निंदिया का
सुख भरा नाता है-
“अम्मा” और पूत का
प्यार भरा
कूट -कूट .
गोरी के जाम भरे
नैनो के प्याले में
सुर्ख सुर्ख गालों में
जुल्फों की बदली में
भौंरा तो कैद हुआ
रात – रानी
कली – खिली
फूल -फूल.
सुरेंद्रशुक्लाभ्रमर
२१.२.१० जल पी .बी.
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