Bhramar ka 'Dard' aur 'Darpan'
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“विष वृक्ष”-Kavita-Bhramarshukla.
जब से उस खेत में
‘एक’ “विष वृक्ष” उगा-
लोगों ने किनारा कर लिया
कन्नी काटने लगे
उस ओर जाने से
और ‘वो’ वृक्ष अपनी –
जड़ें पसारता चला गया
वो पेड़ दिन – ब-दिन
हुआ हरा -बहुत बढ़ा
मगर व्यर्थ-बेकार
जिसका न कोई सरोकार
रोटी से- पेट से ,
खुश्बू से मन से
और फिर
अब उस “खेत” में
सारे “विष –वृक्ष”
ही उगने लगे.
सुरेंद्रशुक्लाभ्रमर
२१.२.१० जल पी .बी.
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