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“घाव ” बना नासूर”Bhrastachar” -shuklabhramar-Kavita-Hindi poem

Bhramar ka 'Dard' aur 'Darpan'
Bhramar ka 'Dard' aur 'Darpan'
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“भ्रष्टाचार”   एक  अजगर है
लीलने को बड़ा मुह, भोली आँखें
बड़ा – समुद्र   सा पेट
अपने चरितार्थ  को बल देते-
की अजगर करे न चाकरी –
फिर भी मोटा होए..मेरी कोठी में आओ
मत पछताओ
“कंकाल” मत बनो
बेटी कुवांरी बैठी – बेटा धूल में पढता
कच्ची दीवाल गिर रही
दवा के पैसे नहीं अम्मा-बाबू के
भाई बेरोजगार- लाचार-
जुए “ड्रग्स” का शिकार
भ्रष्टाचार नहीं -ईमानदारी- महंगाई –
तेरी दुश्मन है
ये बड़ा अजगर है
जो खाए जा रही तुझको- सबको
और उनके “निमंत्रण -पत्र” को
पढता -रोता-फाड़ -फेंकता
उनके चेहरे पर -लौट पड़ा
पैदल ही – एक पीड़ा लिए
गुमसुम
अपने प्यारे से गाँव में
बूढी माँ की गोदी में सर रख
पसर गया -सोचते
काश हमारी नींद खुलती
गाँधी और कल्कि हम खुद बन जाते
ले लेते ” मशाल”
अजगर विलुप्त हो जाता
और फिर ” गरीब” की जान बच जाती.

सुरेन्द्रशुक्लाभ्रमर
२.३० पूर्वाह्न
२३.२.११जलपीबी

 

आँगन में –
‘रौंदते‘ हुए तुलसी को -बेला को
रामचरितमानस -राम के आदर्श को
नियम -कानून को
धज्जियाँ उड़ाते लोग
अजगर का पेट भरते हैं
सरे आम भीड़ में -महफ़िल में

 
और उधर

“वो” देते हैं मुझे-
निमंत्रण
मुझ सा बन जाओ

दिन भर जो जंगल फिरे –
हाथ -पैर मारते –
गरीब-मेहनतकश
पसीना बहाते -दो रोटियों के लिए .
लकड़ियों का गट्ठर जुटाते
उनको मुह फाड़ -चट कर जाता
हमने ही पाल रखा है इसे
सदियों से चारा डालते गए
जनसँख्या अब बढ़ रही –
बाजार गर्म -बड़े-बड़े मार्केट
स्टाल -बिक़े जा रहे
-प्रदर्शनियां -मंत्री से विज्ञानी-ज्ञानी
सब स्वागत समारोह में भाग लेते
“पौधा” लगाते सींच जाते
इस अनमोल बूटे को

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