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” कर्ज -व्याज” तो हनुमान की पूंछ है -karj-vyaaj to hanuman ki poochh-shuklabhramr-kavita-hindipoems

Bhramar ka 'Dard' aur 'Darpan'
Bhramar ka 'Dard' aur 'Darpan'
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” कर्ज -व्याज” तो हनुमान की पूंछ है

‘उसकी’ कचर – कचर बातों से तंग

मै तिलमिला उठता

सुबह -सुबह दिनचर्या

सुना देते – ‘फरमान’

आज चलना है ‘यहाँ’ –

‘वहां’- ‘ये’ करना’-‘वो’ करना

चूर कर देते -मेरे सपने

मेरे अरमान !

हांक देते फिर

दिन भर थका देते

चक्कर लगाता – मै दिन भर

सोचता रहता 

कब होगा -‘वो’  कर्ज पूरा 

मेरे बाप-दादों   का 

ये इसका “व्याज” –

हनुमान की पूँछ हो गयी है 

आदर करता उसका 

मै “भीष्म –प्रतिज्ञा” लिए 

“कर्ण” सा डटा था  

मुक्त होने को –

धोने को दाग .

अथक परिश्रम –

चरमरायी हड्डी –

घर आता  तो -बंध जाता-

“माया –मिठास” में

लोग पानी पिला देते

चारा डाल- ठोंक देते हंथेली से पीठ

 

शुरू हो जाते फिर –

मुझे गोल-गोल हांक देते-

“गाँव” मेरा ब्रह्माण्ड था

मेरा- मेरे बाप दादा की –

अनमोल दुनिया !

रश्म-रिवाज -प्रथा-सम्मान-

से मै सजा था अन्दर तक 

‘अथाह’ ताकत है मुझमे

कभी -कभी भांप लेता-

आँखें बंद कर –

पिजड़े में बंद-शेर सा

गुर्रा उठता -बेबस –

मजबूर-लाचार !

मन तो कहता -पिजड़े को तोड़

“इतिहास” रच दूं –

मुक्त हो जाऊं -” मालिक” से

“बंधन” -“बंधुआ” हालात से

उछाल दूं -पटखनी दूं इनको

चारों खाने चित्त  ये

मुझसे सोचें – चक्कर काटे –

उनका दिमाग -“ये”-

पर फिर वही

प्रथा-परंपरा 

मेरे -प्यारे बाप -दादा की-

याद आती -मेरी संस्कृति 

“मेरा नाम मत डुबाना ”

मै चक्कर काटता –

“कोल्हू ” में

खाने को पा जाता

चबाता- पगुराता 

शांत-चलता 

चक्कर काटते 

ख्यालों    में   ही 

थोड़ा    सा   सो जाता .

 

सुरेन्द्रशुक्लाभ्रमर

२४.०२.२०११

जल (पी.बी.)

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