- 301 Posts
- 4461 Comments
” अमृत फल”
shukla-bhramar-Kavita –Hindi poems .
बसंती हवाओं ने
‘पतझड़’ भगाया
मरे पड़े -पेड़ों में
‘जीवन’ जगाया
नयी कोपलें डाली-डाली
झूम उठी सब में हरियाली
पोर-पोर रंग भरे
छोटा सा फूल खिला –
मन को रिझाते -भौंरे-
“फल” – मै गोदी में-
मुझको खिलाता –
मौसम की मार से –
मुझको बचाता “वो”
पत्तों के आँचल से .
तपता -भीगता -कोप सहता-
आंधी का -विजली का –
वर्षा का -पानी का –
‘पत्थर’ का -झेलता
बड़ा हुआ.
झांकता आँचल से बाहर
अनजानी दुनिया से –
भय खाता-
दुबक-सहम जाता
बड़ा हुआ – झूमते –
मोहक ‘संगीत’ में
पत्तों के ‘गीत’ में
कोयल के ‘कूक’ में
देख-देख नाचता
साथी को – मोर को
बुलबुल व् चाँद को
तभी एक ‘पत्थर’ ने
आहत किया मन -सहमा सा-
काँपता -अंधड़ व विजली –
को- चल पड़ा-
नापता -“रजनी” को
जैसे जैसे -दिन चढ़े
नए- नित -रूप गढ़े
गदराया-ललचाया
रस भरा -“बैरागी” -“पीला”
हुआ “फल” तृप्त करने
“दुनिया” में प्यासा-
किसी का ‘मन’ .
टपक पड़ा ‘आँचल’ से
दूर गयी – माता के
नैनो से दो बूँद –
झर पड़े “गात” पे
और ‘वो’ निछावर
“अमृतफल”
भर मिठास – “डूब गया”
भूल गया – खो गया –
अपना ‘अस्तित्व’
इस “जहाँ” एक प्यारे से
‘काम’ में –
छोटे से ‘गाँव’ में .
सुरेन्द्रशुक्लाभ्रमर
२५.२.११ जल (पी.बी.)
Read Comments