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अमृत फल -shukla-bhramar-Kavita –Hindi poems .

Bhramar ka 'Dard' aur 'Darpan'
Bhramar ka 'Dard' aur 'Darpan'
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” अमृत फल”

shukla-bhramar-Kavita –Hindi poems .

 

बसंती हवाओं  ने

‘पतझड़’ भगाया

मरे पड़े -पेड़ों में

‘जीवन’ जगाया

नयी कोपलें डाली-डाली

झूम उठी सब में  हरियाली

पोर-पोर रंग भरे

छोटा सा फूल खिला –

मन को रिझाते -भौंरे-

“फल” – मै गोदी में- 

मुझको खिलाता –

मौसम की मार से –

मुझको बचाता “वो”

पत्तों के आँचल से .

 

तपता -भीगता -कोप सहता-

आंधी का -विजली का –

वर्षा का -पानी का –

‘पत्थर’ का -झेलता

बड़ा हुआ.

झांकता आँचल से बाहर

अनजानी दुनिया से –

भय खाता-

दुबक-सहम जाता

बड़ा हुआ –  झूमते –

मोहक ‘संगीत’ में

पत्तों के ‘गीत’ में

कोयल के ‘कूक’ में

देख-देख नाचता

साथी को –  मोर को

बुलबुल व् चाँद को

तभी एक ‘पत्थर’ ने

आहत किया मन -सहमा सा-

काँपता -अंधड़ व विजली –

को- चल पड़ा-

नापता -“रजनी” को

 

जैसे जैसे -दिन चढ़े

नए- नित -रूप गढ़े

गदराया-ललचाया

रस भरा -“बैरागी” -“पीला”

हुआ “फल” तृप्त करने

“दुनिया” में प्यासा-

किसी का ‘मन’ .

टपक पड़ा ‘आँचल’ से

दूर गयी – माता के

नैनो से दो बूँद –

झर पड़े “गात” पे

और ‘वो’ निछावर

“अमृतफल”

भर मिठास  –  “डूब गया”

भूल गया – खो गया –

अपना ‘अस्तित्व’

इस “जहाँ” एक प्यारे से

 ‘काम’ में –

छोटे से ‘गाँव’ में .

 

सुरेन्द्रशुक्लाभ्रमर

२५.२.११ जल (पी.बी.)

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