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मेरी “रिसर्च” ” मुंह में राम -बगल में छूरी”
Shukla bhramar –Kavita-Hindi poems.
बाप की -रंगरेलियां
नए नए -क्लब
काल सेंटर
मसाज सेंटर
सुर्ख़ियों में -नामचीन
अँधेरे में बढ़ते कदम
देख-बड़े के होश उड़े- कान खड़े
प्रतिरोध -रोज -रोज
मर्यादा -बाप और पूत की
टूटी.
और बाप ने – पैसे की लालच में
एक अनमोल ‘हीरा’ जुदा कर –
अपना अंग काट लिया
अपने ही हाथ से .
छोटा तो “छोटा” था
प्यारा-मॉडर्न -नया जनरेशन
ओत-प्रोत -यूरोपियन –
कल्चर का -जैसे का तैसा –
कापी – हर -कापी राइट –
उसके पास- लिखता
लिखता -बढ़ा चला –
“काले” से “लाल ” रंग –
चुनता – चला गया
अडल्टरेसन
माडरेसन
अमल्गमेसन
बिना पास -बिना वीजा के
सात समंदर पार
आर्गनायिजेशन
निउज चैनल -मीडिया
बाप -बेटे -छाये
धरे गए -पाँव में बेड़ियाँ –
धड़कन -मंद
विदेशी दवा-दारु ने
छोड़ दिया साथ
कुछ न बचा हाथ
बची यादें -कडवी दवाओं की
देशी- देश- प्यारा-प्रेम
अनमोल “हीरा” उन्हें
पल-पल याद आया
और फिर उनकी समझ
पक्की हो गयी
की हर साथी – साथ रहने वाला –
“तोता’ साथी नहीं होता .
और फिर मेरा प्रोजेक्ट
रिसर्च पूरी हो गयी
मैंने “हीरे” को उनसे मिलाया
बचाया – अटकी हुयी ‘सांस’.
फिर मैंने मुहर लगा दी खुद
अपनी उपाधि के
विषय पर – कि
“दर्पण” झूठ नहीं बोलता-
परछाई बना हर साथी –
“साथी” नहीं होता.
“आस्तीन” में ‘सांप’ भी होता
“कड़वी दवा” अच्छी होती
और ‘मुंह’ में ‘राम’ – बगल में
कभी -कभी “छूरी” भी होती .
सुरेन्द्रशुक्लाभ्रमर
२५.२.११.
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