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“परसों” हे तजुर्बेकार-शुक्लाभ्रमर-कविता-हिंदी पोएम

Bhramar ka 'Dard' aur 'Darpan'
Bhramar ka 'Dard' aur 'Darpan'
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 “परसो” हे तजुर्बेकार –

 पहले आचार -मिर्ची ???

रोटी -दाल-भात …

 पूड़ी -कचौड़ी-

फिर नमक ‘सुपाच्य”

  हर चीज की अहमियत है

 अपनी ‘मांग’

समय पर – समय है बलवान 

 मिठाई तो सबको पसंद है 

 हर दिल को भाये 

 शुरू से अंत तक  क्या वही परसा जाये ???

  जो लोगों को आकर्षित करे-

खींच लाये बाजार गर्म करे –

जेब भरे – लाखों को तिल तिल रुलाये .

   कराहते -मरते लोगों को –

 परसो तो दवा- सहायता

तमाशा -फोटो -विडिओ

कितना जायज है -भाई बता .  

जलते हुए घर में प्यासे को

 परसो -पानी

न फोटो -न मिर्च मसाला

 हे अज्ञानी .  

 विश्वास कर लेंगे लोग

 तेरी कहानी.

जली -राख और बुझा -चेहरा देख

 कैसे लगी आग- और कैसे बरसा पानी .

  बहिष्कृत -उपेक्षित अँधेरे में भटके

 दुबके-जीते-कराहते- गोली खाए

लोगों में जीवन -दुआ – प्यार परसो.

 घृणा -कलंक -इतिहास – नफरत न परसो

 जेठ की दुपहरी नहीं – सावन सा झूम झूम बरसो .

  पोथी -कुरान -रामायण -बाइबिल

 को दूर रख दो मंदिर में -मस्जिद में –

चर्च -गुरूद्वारे में

ऊँचे रख – शीश झुका –

सबका सम्मान कर दो

  तिनका -घोंसला -आश्रय ठिकाना

 बीन -बीन -चुन -चुन परसो

बना दो नया मंच एक

“मानव” का “प्रेमी” का

 इंसा -इंसानियत का

“पावन” एक यज्ञ करो

“साथ में ” बिठा दो

“लंगर” चला दो 

मधुर गीत ” शहनाई” 

 थोडा सा चटपट 

और इतनी मिठाई  परसो –

 जो      इन्हें      पचे

 हे तजुर्बेकार !!.

सुरेन्द्रशुक्लाभ्रमर २७.२.११ जल पी बी  ६.५० पूर्वाह्न .

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