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सूखी रोटी -शुक्लाभ्रम्रर -कविता -हिंदी पोएम

Bhramar ka 'Dard' aur 'Darpan'
Bhramar ka 'Dard' aur 'Darpan'
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कंधे पर बोरा (जूट का थैला )
वो टाँगे ,
शीत लहर में
सिमटा सा ,
कुछ कागज़ कुछ –
कील व् रद्दी ,
प्लास्टिक शायद
बिनता था ,
नजरें कभी उठाता –
था न . कूरे पर –
बस आँखें ,
कभी हँसे कुछ –
बात करे खुद –
“पागल ” सा गाता –
जाता . कभी किसी को –
देखे हँसता ,
दांत श्वेत –
चमकाता था ,
मै भौचक्का
खड़ा देखता ,
इस हालत में
पले जिए वो ,
कैसे हँसता ??

भौं भौं कर
जब कुत्ते भूंके ,
नजर गयी उस ओर ,
कुत्ते के संग
वो लड़ता था ,
जैसे कोई ‘चोर ’

छीना झपटी
किसकी खातिर
ना सोना न चाँदी –
बंधी गठरी
में दिखी एक थी ,
सूखी रोटी ,
जो सोने हीरे
से बढ़कर
भूखे को –
बस होती .

८ .१५ मध्याह्न . १२ .२ .११

जल (पंजाब ) सुरेंद्रशुक्लाभ्रम्रर

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