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“मैदान-ए-जंग” में डटे युवा खिखिया रहे -शुक्लाभ्रमर-कविता-हिंदी पोएम्स

Bhramar ka 'Dard' aur 'Darpan'
Bhramar ka 'Dard' aur 'Darpan'
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“मैदान-ए-जंग” में डटे युवा खिखिया रहे –

आज कुछ नया नहीं
ऊँघता उठा -चाय -चुस्की
नित्यकर्म-अख़बार
इसने लूटा -उसने मारा-
ये घोटाला -वो घोटाला
अपने कमरे में बैठा
इतनी बड़ी दुनिया -“ग्लोब”
ऊँगली से घुमाता रहा
करीने से सजा -सजाया कमरा
किताबें -पोथी -कुछ पन्ने
बस – एक कवि की अमानत
बाहर शीत लहर -शर्द हवाएं
धुंध का आवरण
जिसमे जुड़ा है -धुंआ
चूल्हे में जलती लकड़ी का –
मिल का –
भांय-भांय-दौड़ती गाड़ियों का
श्मशान में -दुनिया को विदाई
देते गम का –
बाहर अंधकार -हमें क्या
उससे -सरोकार !
खून गरमाया -खेत-मैदान-
मंदिर -बाजार-स्टेशन
घूमने निकला – देखा
मंदिर में भीड़ -शोरगुल
घंटे -शंख-भजन-कीर्तन
ऊँचे शिखर-जमीं पर बैठे
लोग -कतार में -कुछ के
हाथ में कटोरियाँ –रटा-रटाया
एक ‘जबान’- दे दाता के नाम –
तुझको अल्ला – रक्खे राम !!!
स्टेशन पर जुदा होते
लोगों का दर्द -विरह
ट्रेन पकडे -कुछ दूर दौड़ते लोग
अंत में दो आंसू टपकाने को
– “खोया” – किसी ने – झकझोरा –
एक युवती -एक को पीठ में बांधे –
दो को पीछे घुमाते..
बाबू- दे न कुछ पैसे –
शादी है बेटी कुआंरी है –
घर जल गया है –
फिर ..एक युवक.. मेरी जेब कट गयी
-घर जाना स़ाब- टिकट भर का ..
छूटता – झटकता – जा पंहुचा -रौनक-
‘बाजार’ -काजू -बादाम की दुकान
-मै तोहफे में बांटने को – चुनता –
तरह तरह के सैम्पल
फिर एक घिघियाती आवाज ..
हृष्ट -पुष्ट युवती ..गोद में झांकता
बच्चा.. हे बाबू ..दे न ..कुछ..
बच्चा भूखा है कल से ..कुछ नहीं खाया..
बच्चा हँसा -शायद ये सोच कि मै ‘फंसा’
मै सोचता रहा ..
कितने अच्छे लोग हैं – हमारे – ‘देश’ के
भरी दुकान में घुसे – ‘भूखे’
मगर न ‘लूटे’ – न कुछ खाते

लौटते अपने घर – आशियाने को
गुमशुम -गुमनाम ‘मै’
धुंधलके में शाम को ..
देखा कुछ तम्बू – खाली जमीन पर
कब्ज़ा -जमाये लोग- कुछ जाने –
पहचाने चेहरे .. औरतें बच्चे ..
‘टेप’ , ‘टी.वी.’ शोर -शराबा
हंसी – ठहाका ..मस्ती -मजा
‘कुछ’ छीलते – तलते – भूनते –
मसालों की – अजीब गंध .
सुबह हो गयी – दिन निकला
गोद में बन्दर से लटके
मासूम – बच्चे – नंगे चिथड़ा पहने
पान खाए महिलाएं -छोकरियाँ
हाथ में ‘कटोरियाँ’ -कुछ बच्चे -सम्हाले
निकल पड़े -अपनी डिउटी पर
उधर टेप सुनते – चुन्नी बदनाम हुयी —
फुल वाल्यूम – ताश -जुआ खेलते
गुटका चबाते -कुछ –
मैदान-ए -जंग में डटे
“युवा” खिखिया रहे ..
उनकी डिउटी –
दिन के पाले में नहीं
शायद रात को होती
है …बस…

सुरेन्द्रशुक्लाभ्रमार
२८.०२.२०११ जल पी.बी.

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