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‘पेट’ में ‘इनके’ -‘अपने’ सारा “गंगाजल” भर लाऊं-शुक्लाभ्रमार-कविता-हिंदी पोएम्स

Bhramar ka 'Dard' aur 'Darpan'
Bhramar ka 'Dard' aur 'Darpan'
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‘पेट’ में ‘इनके’ -‘अपने’ सारा “गंगाजल” भर लाऊं
बजट आ गया
लोक-लुभावन-हर-मनभावन??
जेब हुयी कुछ भारी
बीबी बोली भर ले पैसे
लायें मन की साड़ी
मै बोला स्टील खरीदूं
साबुन से चमकाऊँ
गहनों कपड़ो की दुकान में
इसको चलो सजाऊँ
कुछ बेंचू -फिर खाऊँ

बीबी बोली -चुप कर पगले
किचेन हमारा वही पुराना
मंहगाई – न-जीवन बदले
सोने -गहने सब तो मंहगे
नारी का आभूषण
नेता -नेती सारे दुश्मन
लगते -अब- खर-दूषण

छूट मिली रे -टैक्स पे पगली
एक साठ -से अब है अस्सी
टिकुली -बिंदी लाऊं
कुछ कपडे -पहनाऊँ
उस पैसे से बिउटी- पार्लर
चल तुझको चमकाऊँ

एक लाख का मुंह न देखा
उमर हो गयी पचपन
अभी भी लाते सत्तर -अस्सी
‘पी’-खा जाते ‘भुक्की’ ???

टिकट हुयी ना मंहगी जानू
चारों- धाम घुमाऊँ चल-ना
चल-ना बच्चों को भी लेकर
“पेट” में उनके -अपने सारा
“गंगा-जल” भर लाऊं.

प्राइमरी से नर्सरी में
इनका नाम लिखाऊँ
धूल से देखो फूल खिलेगा
“वीजा” बाद बनाऊं
तुझको ले फिर -उड़ पाऊंगा
सागर के उस पार.

अमरीका-लन्दन क्या सपना??
कल बूढ़े -घिसते – ना मरना
यहीं रहे – दो रोटी खाए
छू पाऊँ मै कन्धा -दे दे
इतनी भर बस आस.

कर्ज लिए हम पैदा होते
‘तैंतीस’ – कहें – ‘हजार’
‘कर्ज’ लिए ही मर जाते हैं
क्या तेरी सरकार !!!!!

‘तीन सौ लाख करोड़’ है आना
काला धन – गोरा करना है
पम्प लगे -पक्का घर होगा
चढ़ी “पजेरो” आना द्वार ….

बजट बनाते फिर वो बैठी
रोटी -सूखी-नमक-अचार
खेती -खाद -नहीं -गुड़ -गोबर
रोटी रात -हुआ भिनसार ..
‘ड्रेस” -‘इग्जाम’ के पैसे थे कम
बेटी रही कुवांरी- बैठी..
फाड़ फेंक के -पेपर फेंकी
“चंद्रमुखी” हो काली- पीली .

सुरेन्द्रशुक्लाभ्रमर
१.०३.२०११
जल पी.बी.

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