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दुस्साहस -“घंटी” बजा देने का -शुक्लभ्रमर५-कविता -हिंदी पोएम्स

Bhramar ka 'Dard' aur 'Darpan'
Bhramar ka 'Dard' aur 'Darpan'
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दुस्साहस -“घंटी” बजा देने का

खुदाई जारी थी
हम खुश थे -कुछ मिलेगा
कोई सभ्यता फिर
“सिन्धु -घाटी” सी –
‘पावन’ – मंदिर के पास
पुजारी की छत्र-छाया में
मिले – सोने के बिस्कुट –
चाँदी-हीरे -गहने-
भीड़-मीडिया -विडियो
आज मिली आजादी
सबको -देखने की
सुनने की !
फिर समझ आई -क्यों-
हम तथाकथित -“छोटे -लोगों” को
घुसने -ठहरने नहीं दिया जाता
‘पीठ ठोंक’ -एक पल में –
‘चल’ कह दिया जाता
मठ-मन्दिर -आश्रम के
प्रान्गड़ में – तहखाने में
वी -आई-पी-लोन्ज में
क्योंकि हम छोटे लोगों के
होती हैं ” जादुई आँखें”
शिव सा ‘त्रिनेत्र’
छोटी सी जीभ – बोलने का साहस
दुस्साहस …
घंटी बजा देने का !!!
शोर मचा
“जागते रहो”
चिल्ला-चिल्ला
सबको -जगा देने का .

शुक्लाभ्रमर५
२.३.११ जल पी.बी.

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