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राम की प्यारी- धरती अपनी-ना जाने क्यों अभिशप्तित है

Bhramar ka 'Dard' aur 'Darpan'
Bhramar ka 'Dard' aur 'Darpan'
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माया मेरी -ईहा -लिप्सा
शक्ति- सारी – सोयी
भाई मेरे – बहना मेरी
नारी-शक्ति जागो !!!

देखो चल- गुजरात -धरा को
कैसे है चमकाया !
बिजली- पानी -भरा ‘अमन’ है
‘न्योता’ दिए बुलाया !

बड़े-बड़े उद्योग- पति सब
ज्ञानी – ध्यानी आये !
‘हाथ’ की उनकी देख ‘लकीरें’
सपने सच कर जाएँ !

बुद्ध की धरती या विहार कर
आओ सब तुम झांको !!!
परिवर्तन क्या लहर चली है
अपने को कुछ आंको !

राम की प्यारी- धरती अपनी
ना जाने क्यों अभिशप्तित है
ना -कल है ना- कार- न खाना
अवध पुरी की अवधी सूखी

गाँव में देखो – मैया मोरी
मंदिर कई बनाये !
मूर्ति बनाये पत्थर की हम
जान डाल न पाए

कभी हँसे ना – ना वो रोये
‘दर्द’ देख के – यहाँ बसा जो
तेरे- मेरे- पास -यहाँ पर
दिन प्रतिदिन जो होए !!

‘पूरब’ के ‘अंचल’ में स्वागत
महिमा कुछ दिखलाओ !
वैर भावना जो अपने मन
आ कर सब झूंठलाओ !!

हे री ! तेरी बड़ी है ताकत,
तेरा नाम सुना था
दुनिया को चमकाने का कुछ
सपना कभी बुना था !

आओ मेरे गाँव कभी तुम
लक्ष्मी- माया -अंगना मोरे !!
घास -फूस का ‘छप्पर’ जो ये
टूटा – फूटा -जिसमे –
खुला आसमां है दिखता !!

ऐसी आस लगा हम बैठे
तेरे – मेरे प्यारे बदरा घूम- घूम- फिर- आयें
रंग बिरंगे- हरे -भरे जब भर- भर के घर आयें –
बदरा प्यारे – कभी कभी- तो अमृत बरसें
बरसे रस की धारा !!
इस ‘आँगन’ फिर आ कुछ बैठो
सूखी रोटी खाओ !
हिचकोले –ले-इन सड़कों पर
हरियाली कुछ लाओ !

जब आऊँ मै खेत जोतकर
जली हुयी चमड़ी मेरी है,
माथे बहे पसीना !
शीतल जल ही – जरा पिला जा
पाँव में मेरे फटी बिवाई
कितना मुश्किल जीना
एक जोड़ी तू बैल दिला दे
दिल्ली से – एक ‘चप्पल’- ही
तू आज भिजा दे !!

इस आँगन में – हे माया तू
माया छोड़े-तुलसी एक लगा जा

tulsi_13018

(फोटो धन्यवाद के साथ अन्य स्रोत से )

थोडा सा कुछ शीतल जल –
घी का दिया जला जा .

सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर ५
13.04.2011

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