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चार संत की भीड़ जुटाकर हवन यज्ञं मत करना !

Bhramar ka 'Dard' aur 'Darpan'
Bhramar ka 'Dard' aur 'Darpan'
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(१)
पहले गीदड़ भभकी होती
बन्दर घुड़की होती !
चार जने मिल – कर लेते थे
अपने घर रखवाली !
सीटी जरा बजा देने पर
भीड़ थी जुटती भारी !
सिर पर पाँव रखे कुछ भागें !
साथ साथ उठ के सब धाते !
रात रात भर रहते जागे
होती पहरेदारी !!
अब तो सोये सभी पड़े हैं
चाहे ढोल बजाओ !
उनके -घर सब मरे पड़े हैं
भीड़ लगे -उठ -जगा दिखाओ !!
अब तो शेर दहाड़े -“भाई”
कुछ करोड़ ले आना !
भरा समुन्दर -भंवर बड़ी है
माझी कुशल जुटाना !!
ताकत हो जिनकी बांहों में
दूर दृष्टि जो रखते !
कुटिल नीति चाणक्य बड़े हैं
उनकी जान बचाए !
बज्र हमारा चुरा लिए हैं
गरजें अब चिल्लाएं !
हर नुक्कड़ चौराहे देखो
राक्षस-संत बने घुस आये !
उनकी रोज परीक्षा करना
हीरा-कांच परख तू रखना !
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चार संत की भीड़ जुटाकर
हवन यज्ञं मत करना !
परसुराम-संग राम बुलाकर
खुद की रक्षा करना !
पहले – इतिहास तो देख लिए
अब वर्तमान को बुनना !
देश -काल कुछ पढो “भ्रमर” तुम
प्रेम सीख -बस कैद न मरना !!
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शुक्ल भ्रमर ५
०१-०७.2011
जल पी बी

(२) कौवे चार वहां बैठे हैं
सोना चोंच मढ़ाये
उड़ उड़ मैले पर मुह मारें
काग-भुसुंडी बन बतियाएं !!
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शेर वही जो बाहर निकले
भूख लगे-बस -खाना खाए
कुछ पिजड़े में गीदड़ जैसे
नोच-खसोट-के गरजे जाएँ !!
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हाथी मस्त है घर-घर घुमे
कुत्ते भौं भौं भौंके जाएँ
कभी सामने आ कर भौंको
मारीचि से तुम तर जाओ !!
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ये घर अपना एक मंदिर है
देव -देवियाँ पूत बहुत हैं
कर -पवित्र-आ-दीप जलाना
राक्षस -वन-मुह नहीं दिखाना !!
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अभी वक्त है खा लो जी भर
लिए कटोरा फिर आना
अपना दिल तो बहुत बड़ा है
चमचे-चार-भी संग ले आना !!
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उन जोंकों संग -लिपट रहो ना
खून चूस लेंगी सारा
होश अगर जल्दी कुछ करना
नमक डाल-कुछ नमक खिलाना !!
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नदी तीर एक सेज सजी है
आग दहकती धुँआ उठा है
जिनके दिल से खून रिसा है
दंड लिए सब जुट बैठे हैं
——————————–
शुक्ल भ्रमर ५
२९.०६.२०११
जल पी बी

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