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चंगू मंगू की कहानी

Bhramar ka 'Dard' aur 'Darpan'
Bhramar ka 'Dard' aur 'Darpan'
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चंगू मंगू की कहानी
बारिस के इस झमा -झम मौसम में हमारी तरह से ही सब आनंदित होते है- मजे लेते हैं- सब की अपनी अलग दुनिया देखने की अलग आँखें होती हैं उसी चीज को -आइये इन बच्चों चंगू -मंगू से हम भी बहुत कुछ सीखें -आनंद की अनुभूति करते बढ़ते चलते रहें इस जीवन के कठिन राहों में –
दर्द को भुलाएँ -दर्द का अहसास न करे -मुस्काएं –
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(फोटो गूगल /नेट से १२३ बी आर यफ से साभार )

मिटटी जरा उभारे निकला
झाँक के देखा -इधर उधर
पीला-पीला गाल फुलाए
टर्र टाँय करता बाहर !!
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उछल कूद के फुदक -फुदक कर
माँ के अपने पास गया
सुप्रभात माता श्री कहकर
पहले उनका नमन किया !!
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बोली बेटे क्या विपदा है
आँखें क्यों छलकी हैं तेरी
क्या हमसे कुछ कमी हुयी है
चिंता बढती देख के मेरी
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मंगू फिर रो रो कर बोला
माँ देखो न झम झम बारिस
खेत बाग़ सब भरा पड़ा
गर्मी से मै तप्त हूँ माता
मिटटी में था दबा पड़ा !!
चंगू ने शैतानी की थी
ऊपर चढ़ था लदा खड़ा !!
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गाल फुलाए बड़ा सा मेढक
टर्र टाँय करता आया
बोला बेटा अरे अरे हे !
एक हाथ ना बजती ताली
उसने ही क्या किया सभी कुछ
बात नहीं ये मानने वाली
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पिता श्री मेरी भी गलती –
थोड़ी -मै बतलाता हूँ
मात -पिता से क्या गलती मै
अपनी कभी छिपाता हूँ !!
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छोटे -छोटे बच्चों से चंगू ने
उधम रार-मचाया था
दौड़ -दौड़ वे हांफ रहे थे
उनको बहुत रुलाया था !!
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तब मैंने भी दौड़ा उसको
पानी में था ठेल दिया
जब भी सिर वो जरा निकाले
कूद उसी पर- बैठा था !!
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इसी बात पे क्रोधित हो वो
बातें मुझसे बंद किया
जब मिटटी मै घुस सोया तो
चढ़ा -लदा- वो बंद किया !!
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बुरे काम का बुरा नतीजा
भूल गए क्या कहती नानी
बच्चे हो पानी -शैतानी
अच्छी बहुत नहीं होती
घर आ के आराम करो अब
माँ तेरी चिंता में रोती!!
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बारिस का था कहर बहुत ही
टी. वी .देखे सहम गए
टर्र टाँय कर फुदक फुदक फिर
तीनो घर में दुबक गए !!
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सुरेन्द्र कुमार शुक्ल “भ्रमर”५
७.७.२०११ जल पी बी

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