Menu
blogid : 4641 postid : 1139

इस पर दाग न लगे (मै और मेरा दर्पण)

Bhramar ka 'Dard' aur 'Darpan'
Bhramar ka 'Dard' aur 'Darpan'
  • 301 Posts
  • 4461 Comments

मै और मेरा दर्पण-
हमजोली हैं
चोली-दामन का साथ है
जन्मों के साथी हैं
गठ-बंधन है इससे मेरा
अब तक साथ निभाता
साथ-साथ चलता
इतनी दूर ले आया है
जो मै देख नहीं सकता
इसने दिखाया है
मेरा चेहरा -मेरी पीठ -मेरा भूत
बन के देवदूत
निश्छल -निष्कपट
आत्मा है इसकी
सच कह जाता है
मुझ सा
भले ही पत्थर उठे
देख घबराता है
टूटा नहीं -अब तक
प्रार्थना है हे प्रभू
इस पर दाग न लगे
न ये टूटे -फूटे
ना ये बदले
नहीं तो आज कल तो
दर्पण भी न जाने क्या क्या
चटपटा -रोचक
त्रिआयामी-खौफनाक
मंजर दिखाते हैं
पैसा कमाते है -उनके लिए
खुद तो शूली पे टंग
दर्शक को लुभाते हैं –
इतना झूठ -फरेब देख -चैन से
न जाने कैसे ये
खाते हैं -सोते हैं
दर्पण कहलाते हैं ???
जब मै अँधेरे में
या अँधेरा मुझमे समाता है
न जाने क्यों ये दर्पण
साथ छोड़ जाता है ??
कुरेदता है बार-बार
नींदें हराम किये
मुझको जगाता है
बेचैन कर मेरी आत्मा को
रौशनी में
खींच ही लाता है !!!
——————
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल “भ्रमर” ५
८.३० पूर्वाह्न जल पी बी
१८.१०.2011

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh