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बाबा “क्षमा” करना
शायद किसी की तेज रफ़्तार ने
उसके पाँव कुचल डाले थे
खून बिखरा दर्द से कराहता
आँखें बंद –माँ –माँ –हाय हाय …
अपनी आदत से मजबूर
जवानी का जोश
मूंछे ऐंठता -खा पी चला था – मै
तोंद पर हाथ फेरता -गुनगुनाता
कोई मिल जाए
एक कविता हो जाये !!
दर्द देख कविता आहत हुयी
मन रोया उसे उठाया
वंजर रास्ता – सुनसान
जगाया -कंधे पर उसका भार लिए
एक अस्पताल लाया !
डाक्टर बाबू मिलिटरी के हूस
मनहूस ! क्या जानें दर्द – आदत होगी
खाने का समय – देखा -पर बिन रुके
चले गए -अन्य जगह दौड़े
उपचार दिलाये घर लाये
धन्यवाद -दुआ ले गठरी बाँधे
लौट चले -कच्चे घर –
झोपडी की ओर…………
एक दिन फिर तेज रफ़्तार ने
मुझे रौंदा -गठरी उधर
सतरंगी दाने विखरे -कंकरीली सडक
लाठी उधर – मोटा चश्मा उधर
कुछ आगे जा – कार का ब्रेक लगा
महाशय आये – बाबा “क्षमा” करना
जल्दी में हूँ -कार स्टार्ट –फुर्र ..ओझल
“भ्रमर” का दिल खिल उठा
“आश्चर्य” का ठिकाना न रहा
किसी ने आज प्यार से ‘बाबा” कहा
“क्षमा” माँगा -एक “गरीब” ब्राह्मण से
वो भी “माया”-“मोह” के इस ज़माने में
जहाँ की “चरण” छूना तो दूर
लोग “नमस्ते” कहने से कतराते
‘तौहीन’ समझते हैं
सब “एक्सक्यूज” है
दिमाग पर जोर डाला
अतीत में खोया
आवाज पहचानने लगा
माथे की झुर्रियों पर बोझ डाला
याद आया – सर चकराया
इन्ही “भद्र पुरुष” का पाँव था कुचला
हमने कंधे पर था ढोया
और उस दिन था ये “बीज” बोया
या खुदा -परवरदीदार
अपना किया धरा
बेकार–कहाँ जाता है ??
कभी न कभी तो है काम आता ?
मै यादों में पड़ा
थोडा कुलबुलाया ..रोया
फिर हंसा
अपनी किस्मत पर
और गंतव्य पर चल पड़ा ….
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सुरेन्द्र कुमार शुक्ल “भ्रमर” ५
२१.११.२०११ यच पी
८.१८-९.०८ पूर्वाह्न
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