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तुलसी गीता रंक वास में

Bhramar ka 'Dard' aur 'Darpan'
Bhramar ka 'Dard' aur 'Darpan'
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तुलसी गीता रंक वास में
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(फोटो साभार गूगल/नेट से लिया गया )

अरे विधाता क्यों कठोर तू
पत्थर मूरति मंदिर बैठा
देख देख हालत दुनिया की
क्यों ना दिल है तेरा फटता
कुछ तो दया दिखाओ
अब आओ अब आओ ..
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प्रेम की अलख जगा दे जोगी
सब होते-सब आज हैं रोगी
सडा गला मन लेकर घूमें
बाज गिद्ध सब -हंस न दिखते
दुनिया ज़रा बचाओ
अब आओ अब आओ .
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बड़े महल हैं सजे सजाये
मन मिलता -ना -नैन मिलाये
तुलसी गीता “रंक” वास में
पावन गंगा -जल डाले तुम
जीवन सरल बनाओ
अब आओ अब आओ .
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प्यारे बच्चे घूम रहे हैं
भूखे नंगे रोते सोते
कहीं बाँझ गोदी है सूनी
विपदा सब हर जाओ
अब आओ अब आओ .
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नयन विहीन -चक्षु दे जाओ
बेसुर को सुर ताल सिखाओ
उस गरीब को हक दिलवाओ
पत्थर दिल पिघलाओ
अब आओ अब आओ .
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नैनो में तुम ज्योति जगा दो
मन खुश्बू भर जाओ
शान्ति ख़ुशी – सुख भरा हो आंगन
राम-राज्य फिर लाओ
अब आओ अब आओ .
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भरो ताजगी जोश होश सब
सूरज चंदा बन चमकें
धरती गगन सा हो विस्तृत मन
पुलकित रोम-रोम मन महके
मुक्त फिरें हम संग-संग गाते
सब को गले लगाओ
अब आओ अब आओ …..
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हरी भरी बगिया हो सब की
बुलबुल कोयल चहकें
मन-मयूर हों नर्तन करते
चंदन -पुष्प-सरीखे महकें
तितली सा- शिशु मन -उड़-उड़
इन्द्रधनुष हो जाए
अब आओ… अब आओ …..
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सुरेन्द्र कुमार शुक्ल “भ्रमर५”
७.२१-७.४५ पूर्वाह्न
करतारपुर जल पी बी २४.०२.12

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