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लक्ष्मण रेखा

Bhramar ka 'Dard' aur 'Darpan'
Bhramar ka 'Dard' aur 'Darpan'
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लक्ष्मण रेखा
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वही तन वही मन
खूबसूरत -प्रेम प्यार
बीस की दहलीज पार
अंगारों से भरी राह
बेचैनी आह
पाँव जल जायेंगे
उधर मत जाना
ये मत करना
वो मत करना
लक्ष्मण रेखा
खींच दी गयी थी
तितली सी उडती -दौड़ती
उस बगिया में जाना
उस पेड़ -लता से चिपक जाना
घंटों बतियाना उससे
बहुत कचोटता था अब मन को
दिल में उफान हाहाकार !
छोटी सी नदिया
तब -बाँधी जा सकती थी
जब छोड़ दी गयी थी उन्मुक्त
अब बाढ़ आ चुकी थी
उछ्रिन्खल-जोश -जोर
हहर-हहर बार बार उफनती
शांत होती ..
कुछ कीचड़ कुछ फूल
संगी -साथी
सब बहा जा रहा था
तेज गति से
न जाने कब तक
ये बंधन ये बाँध
अब इससे लड़ पायेगा –
बांधे रहेगा ?
कभी न कभी
आज नहीं तो कल ये
टूट जाएगा …….
और
सरिता -सागर के आगोश में
पुरजोर दौड़ लगा
खो जायेगी !
——————
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर ५
३.४६-४.०२ पूर्वाह्न
कुल्लू यच पी १३.०२.२०१२

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