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बूढा पेड़
झर-झर झरता
ये पेड़ (महुआ का )
कितना मन-मोहक था
रस टपकता था
मिठास ही मिठास
गाँव भर में
‘भीड़’ जुटती
इसके तले
‘बड़ा’ प्यारा पेड़
‘अपने’ के अलावा
पराये का भी
प्यार पाता था
हरियाता था
फूल-फल-तेल
त्यौहार
मनाता था
थम चुका है
अब वो सिल-सिला
बचा बस शिकवा -गिला
फूल-फल ना के बराबर
मन कचोटता है ……
आखिर ऐसा क्यों होता है ??
सूखा जा रहा है
पत्ते शाखाएं हरी हैं
‘कुछ’ कुल्हाड़िया थामे
जमा लोग हंसते-हंसाते
वही – ‘अपने’- ‘पराये’
काँपता है ख़ुशी भी
ऊर्जा देगा अभी भी
‘बीज’ कुछ जड़ें पकड़ लिए हैं
‘पेड़’ बनेंगे कल
फिर ‘मुझ’ सा
‘दर्द’ समझेंगे !
आँखें बंद कर
धरती माँ को गले लगाये
झर-झर नीर बहाए
चूमने लगा !!
आज हमारे वृद्धों की बहुत ही दयनीय दशा है जिस तरह से इस वृक्ष का दर्द उभरा जब तक वह फला फूला सारे उससे प्यार करते रहे अपने भी और पराये भी …लेकिन जब दिन बढे उम्र ढली फलने फूलने खिलाने भरण पोषण दूसरों को नहीं कर सका तो लोग उसे नकार कर धराशायी कर दिए ठीक उसी तरह है अंत के अपने दिन हैं जिस की खातिर लोग भागते रहे सब कुछ सह कर कमाते रहे भ्रष्टाचार करते रहे चोरियां भी की वही लोग इस तरह से मुंह फेर कर तरह तरह की बातें सुना कर दिल छलनी कर देते हैं दूर चले जाते हैं बुढ़ापे में कोई पानी तक देने वाला नहीं मिलता ….काश लोग इन्हें भरपूर प्यार दें ……………..
( सभी फोटो गूगल नेट से साभार लिया गया )
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल ‘भ्रमर’५
कुल्लू यच पी २५.६.१२
८-८.३३ पूर्वाह्न
ब्लागर- प्रतापगढ़ उ.प्र .
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