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“कील चुभी वो नहीं विलग “(पहला पहला प्यार है )
(फोटो साभार गूगल / नेट से लिया गया )
वे कहते हैं सब भूल गये
हम कहते कुछ भी याद नहीं
कारण मैंने भी किया वही
जो उसने पिछले साल किये
अब उसके भी एक आगे है
मेरे भी पीछे बाँध दिए !!
रस्में पूर्ण समाज ख़ुशी
हम भी फिरते हैं ख़ुशी ख़ुशी
हुए मुखरित अंकुर दूर सहज
पर कील चुभी वो नहीं विलग !!
अब कील चुभी दो हाथ मिले
संतुष्ट सभी कुछ आस हिये
लुट जाओ उनका हार बने
रोको मोती ना डूब मरे !!
वे भूले क्या ? जब ध्यान करें
क्या याद नहीं ? हम याद करें
आधार एक छवि एक मिली
दो प्राणों की है एक जमीं !!
मरोड़ दो छोड़ दो वहीँ नव-पल्लव को
ये आहें सांसें लेने को शीश उभर आया है ,
पी जाओ विष हैं ठीक कहे ,
है समता ,हम भी भूल गए !!
(पहला प्यार भूलता कहाँ है )
जब कभी भी किसी पड़ाव पर जिन्दगी की राहों में वे पुनः मिल जाते हैं दिल खिल जाते हैं आँखें बरबस ही न जाने क्या क्या कह शिकवा शिकायत कर जाती हैं वो खुशनुमा मंजर प्यारा अहसास एक एक दृश्य फिर से नयनों में तैर जाता है और दिल कभी खुश हो लहर लहर लहराता है तो कभी बोझिल हो गम सुम सा बस देखता रह जाता है पहला प्यार भूलता कहाँ है ………….
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर ५
कुल्लू यच पी
१.०० पूर्वाह्न ७.८.२०१२
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