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उँगलियों के इशारे नचाने लगी

Bhramar ka 'Dard' aur 'Darpan'
Bhramar ka 'Dard' aur 'Darpan'
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उँगलियों के इशारे नचाने लगी
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(फोटो साभार गूगल / नेट से लिया गया )

उम्र की सीढ़ियों कुछ कदम ही बढे
अंग -प्रत्यंग शीशे झलकने लगे
वो खुमारी चढ़ी मद भरे जाम से
नैन प्याले तो छल-छल छलकने लगे
लालिमा जो चढ़ी गाल टेसू हुए
भाव भौंहों से पल-पल थिरकने लगे
जुल्फ नागिन से फुंफकारती सी दिखे
होश-मदहोशी में थे बदलने लगे
नींद आँखों से गायब रही रात भर
करवटें रात भर सब बदलते रहे
तिरछी नैनों की जालिम अदा ऐ सनम
बन सपन अब गगन में उड़ाती फिरे
पर कटे उस पखेरू से हैं कुछ पड़े
गोद में आ गिरें सब तडफने लगे
सुर्ख होंठों ने तेरे गजब ढा दिया
प्यास जन्मों की अधरों पे आने लगी
दिल धडकने लगा मन मचलने लगा
रोम पुलकित तो शोले दहकने लगे
पाँव इत-उत चले खुद बहकने लगे
कोई चुम्बक लगे खींचता हर कदम
पास तेरे ‘भ्रमर’ मंडराने लगे
देख सोलह कलाएं गदराया जिसम
नैन दर्पण सभी खुद लजाने लगे
मंद मुस्कान तेरी कहर ढा रही
कभी अमृत कभी विष परसने लगी
भाव की भंगिमा में घिरी मोहिनी
मोह-माया के जंजाल फंसने लगी
तडफडाती रही फडफडाती रही
दर्द के जाल में वो फंसी इस कदर
वेदना अरु विरह के मंझधार में
नाव बोझिल भंवर डगमगाने लगी
नीर ही नीर चहुँ ओर डूबती वो कभी
आस मन में रखे – उतराने लगी
जितना खोयी थी- पायी- भरी सांस फिर
उड़ के तितली सी- सब को सताने लगी
मोरनी सी थिरकती बढ़ी जा रही
उँगलियों के इशारे नचाने लगी
——————————————-
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल ‘भ्रमर’ ५
मुरादाबाद-सहारनपुर उ प्र.
१०-१०.४५ मध्याह्न
१०.०३.१२

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