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प्रिय मित्रों लिखना क्या ?, ये तस्वीरें तो स्वतः दिल चीर कर रख देती हैं, क्या हम अपने को विकसित या विकासशील कह सकते हैं ?? शायद नहीं एक तरफ काजू बादाम मेवे मलाई, गर्दन पर हाथ दबोचे लूट ले जाना और एक तरफ आँतों का सिकुड़ा रहना क्या सपने देखेंगे ये बच्चे ?? क्या भविष्य होगा ?? सोच तो वहीं धराशायी हो जाती है, कूड़े में टटोलते रहना, चोरी की तरफ अग्रसर होना, कुत्तों से भी छीन झपट भोजन पर ही आँखे टिकी होना, मैले कुचैले गंदे घूमना, भिक्षाटन में रत रहना, न जाने क्या क्या …
जितना भोजन अनायास रोज फेंक दिया जाता है काश उसका कुछ हिस्सा प्यार से इनको समर्पित हो इनकी जरूरतों को समझा जाए और कुछ न कुछ ही सही मदद के रूप में हाथ बढे, शिक्षा मिले रौशनी फैले, ये कैद से निकल कर सांस ले सकें होटलों से, ईंट भट्टों से ,गैराज से, घर में कैद नौकर बन बदतर हालत में शोषण के शिकार से ,.
जब पढ़ते है की फलां डॉ ने फलां अभियंता ने गाँव से बच्चे को ला के कैद में रखा शोषण किया माँ बाप से मिलने नहीं दिया कभी कभार माँ बाप को कुछ भीख सा फेंक दिया तो आँखों में आग दहक जाती है लेकिन फिर आंसुओं से बुझ भी जाती है, हाथ मल के हम बैठ जाते हैं की ये इंडिया है यहाँ कुछ नहीं हो सकता , लेबर डिपार्टमेंट कानून सब आँखों पर पट्टी बांधे घूमते हैं , देखते हैं बहुत दया आई इन बच्चों पर तो अपने प्यारे दुलारे बच्चों से एक कौड़ी हाथ में दे पुन्य कमा लेते हैं …भला हो इस कानून का और इस तरह के भ्रष्ट रक्षकों का ….काश बुद्धिमान लोग कुछ सोचें जागें इस दिशा में तो वो दिन दूर नहीं कि ये नयी पीढ़ी सपने साकार कर भारत को एक नयी दिशा दे ……सब शुभ हो प्रभु सब को सद्बुद्धि दें ….भ्रमर ५
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