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धरती भी काँप गयी

Bhramar ka 'Dard' aur 'Darpan'
Bhramar ka 'Dard' aur 'Darpan'
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धरती भी काँप गयी
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उड़ान भरती चिड़िया
जलती दुनिया
आंच लग ही गयी
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दाढ़ी बाल बढ़ाये
साधू कहलाये
चोरी पकड़ा ही गयी
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इतना बड़ा मेला
पंछी अकेला
डाल भी टूट गयी
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खंडहर भी चीख उठा
रक्त-बीज बाज बना
धरती भी काँप गयी
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कानून सोया था
सपने में रोया था
देवी जी भांप गयीं
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जल्लाद जाग उठा
गीता को बांच रहा
सुई आज थम गयी
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‘एक’ माँ रोई थी
‘एक ‘ आज रोएगी
अपना ही खोएगी
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सुरेन्द्र कुमार शुक्ल ‘भ्रमर’५
१ २ . १ ५ पूर्वाह्न -1 २ . ३ ४ पूर्वाह्न
कुल्लू हिमाचल
२ ५ .० ८ – १ ३

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