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बाप की पगड़ी में

Bhramar ka 'Dard' aur 'Darpan'
Bhramar ka 'Dard' aur 'Darpan'
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बाप की पगड़ी में
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बेशर्म लोगों की
बड़ी -बड़ी फ़ौज है
चोर हैं उचक्के हैं
लूट रहे मौज हैं
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थाने अदालत में
‘चोर’ बड़े दिखते हैं
नेता के पैरों में
‘बड़े’ लोग गिरते हैं
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बूढा किसान साल-
बीस ! आ रगड़ता है
परसों तारीख पड़ी
कहते ‘वो’ मरता है
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बाप की पगड़ी में
‘भीख’ मांग फिरता है
‘नीच’ आज नीचे ‘पी’
गिरता फिसलता है
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गधे और उल्लू का
बड़ा बोलबाला है
भक्त ‘बड़े’ चमचे हैं
जिनका मुंह काला है
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नीति -रीति नियम -प्रीति
रोती हैं खोती हैं
विद्या व् लक्ष्मी भी
महलों जा रोती हैं
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सूरज भी क्षीण हुआ
अँधियारा छाया है
राहु-केतु ग्रहण लगा
कौन बच पाया है ?
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सुरेन्द्र कुमार शुक्ल ‘भ्रमर’५
1.30 P.M.-2.08 P.M.
कुल्लू हिमाचल
26.08.2013

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