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खुश्बू फ़िज़ा मे बिखरी (तेरा चेहरा)

Bhramar ka 'Dard' aur 'Darpan'
Bhramar ka 'Dard' aur 'Darpan'
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चेहरा तुम्हारा पढ़ लूं

प्रिय मित्रों इस रचना ‘ तेरा चेहरा ” को आज १४.१०.२०१३ के दैनिक जागरण अखबार के कानपुर रायबरेली उ प्रदेश के संस्करण में स्थान मिला

‘ तेरा चेहरा ‘ को आप सब का स्नेह और जागरण जंक्शन का प्यारा मिला ख़ुशी हुयी

आभार
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर ५
प्रतापगढ़ भारत
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चेहरा तुम्हारा पढ़ लूँ
पल भर तो ठहर जाना
नैनों की भाषा क्या है
कुछ गुनगुना सुना-ना
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आईना जरा मै देखूँ
क्या मेरी छवि बसी है
इतना कठोर बोलने को
कसमसा रही है …….
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आँखों मे आँखें डाले
मै मूर्ति बन गया हूँ
पारस पारस सी हे री !
तू जान डाल जा ना
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खिलता गुलाब तू है
कांटे भी तेरे संग हैं
बिन खौफ मै ‘भ्रमर’ हूँ
खिदमते-इश्क़ पेश आ ना
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खुश्बू फ़िज़ा मे बिखरी
मदमस्त है पवन भी
अल्हड नदी यूँ दामन-
को छेड़ती तो न जा
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अम्बर कसीदाकारी
अद्भुत नये रंगों से
बदली है खोले घूँघट
कुछ शेर गुनगुनाना
———————–
सपने सुहाने दे के
बिन रंगे चित्र ना जा
ले जादुई नजर री !
परियों सी उड़ के ना जा
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सुरेन्द्र कुमार शुक्ल ‘भ्रमर’५
प्रतापगढ़
वर्तमान -कुल्लू हि . प्र.
09.10.2013
10.15-11.00 P.M.

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