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दुखी आत्मा

Bhramar ka 'Dard' aur 'Darpan'
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दुखी आत्मा

k6133829

दुखी आत्मा माँ धरती की चीख -चीख चिल्लाये
कोख हनन जो नारी शक्ति नींद भला कैसे आये
कुछ दुधमुहे पड़े कूड़े में कलुषित मुख वाले भागें
हाय पूतना आज भी जीवित मानव क्या होगा आगे
अधनंगे कुछ भीख मांगते घृणा क्रोध हिय भर आते
ज्वालामुखी भरे कुछ उर तो सोच सोच कुछ मर जाते
आओ जागें जान लगा दें कहें कुपोषण भारत छोड़े
खिल खिल हँसे सुमन नन्हे सब भारत क्यारी खिल जाए
कल की पीढ़ी ज्ञान शक्ति से संस्कृति परचम लहराए
दुखी न होगी आत्मा धरती तो आनन्द और आये
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दुखी आत्मा माँ धरती की चीख -चीख चिल्लाये
अन्धकार में डूबे हम सब करे निशाचर अब भी राज
बहन बेटियाँ नहीं सुरक्षित शिक्षित मानव है धिक्कार
लगा मुखौटे काल बना तू पूजा निज करवाता है
लोभ-मोह छल प्रेम फंसा के शोषण करता जाता है
कुछ दहेज़ की बलि बेदी पर कुछ जीते जी मर जाती
स्वर्ग धरा होता रे मूरख कई ‘कल्पना रच जातीं
आओ जागें समता ला दें जननी -जनक दुलारी पूजें
दुर्गा काली शारद लक्ष्मी ‘निज’ शक्ति हैं आओ पूजें
दुखी न होगी आत्मा धरती तो आनन्द और आये
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दुखी आत्मा माँ धरती की चीख -चीख चिल्लाये
भूखे पेट अभी कुछ सोते बिलखें बच्चे हाहाकार
फटे चीथड़े शरमाती माँ विकसित हम आती ना लाज
दीन दुखी को और सताते क्या नेता क्या साधू आज
मति-मारी, हैं भ्रष्टाचारी , न्याय प्रशासन सोता आज
सड़क खा गए पुल गिरता है सभी योजना मुंह की खाती
ईमां मरता कुछ कुढ़ यारों कल आये तेरी भी बारी
अभी सांस अपनी है बाकी ‘पूत’ आत्मा ले रच जाएँ
नाम हमारा रहे जुबाँ पर ईमां प्रेम-वृक्ष हरियाये
दुखी न होगी आत्मा धरती तो आनन्द और आये
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सुरेन्द्र कुमार शुक्ल ‘भ्रमर ५’
३. ५ ० -५.३ ५ पूर्वाह्न
१ ४ .१ ० .२ ० १ ३
कुल्लू हिमाचल भारत

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