- 301 Posts
- 4461 Comments
किसको किसको मै समझाऊँ
ये जग प्यारे रैन बसेरा
सुबह जगे बस भटके जाना
ठाँव नहीं, क्या तेरा-मेरा ??
आंधी तूफाँ धूल बहुत है
सब है नजर का फेरा
खोल सके कुछ चक्षु वो देखे
पञ्च-तत्व बस, दो दिन मेला
——————————–
कनक कनक रम बौराया जग
भौतिक खेल-खेल में डूबा
पीतल चमक खरा सोना ना
बूझ पहेली पूरा-पूरा
हीरा कोयले में मिलता रे !
यह जग प्यारे बड़ा अजूबा
——————————–
सूरज ना धरती से निकले
नहीं समाये ये रे ! धरती
ललचाये ना -‘देखा’ होता
सार-सार गहि तजि दे थोथा
खाद उर्वरक कर्म न डाले
क्या पायेगा वंजर धरती
————————–
कभी चांदनी कभी अँधेरा
सूखा वर्षा फटता बादल
रचा कभी पल मिट है जाता
देख ‘सूक्ष्म’ सत का हो कायल
कुदरत ने भेजा रचने को
जोश प्रेम से रच हे! पागल
—————————–
लोभ मोह ना करे संवरण
ईहा क्रोध राग अति घातक
शान्ति-त्याग जप जोग वरन कर
ऋणी ऋणात्मक काहे पातक ?
तू न्यारा तेरी रचना न्यारी
प्रिय बन जा रे ! मन कर पावन
———————————-
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर ५
६.२५ पूर्वाह्न -७.०० पूर्वाह्न
करतारपुर जालंधर पंजाब
४.०३.२०१४
Read Comments