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पूत प्रीत ‘माँ ‘ गंगा तू है ——————————–

Bhramar ka 'Dard' aur 'Darpan'
Bhramar ka 'Dard' aur 'Darpan'
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(पूज्या माताश्री और पूज्य पिताजी )

हे माँ तू अमृत घट है री
कण कण मेरे प्राण समायी
मै अबोध बालक हूँ तेरा
पूजूं कैसे तुझको माई
बिन तेरे अस्तित्व कहाँ माँ
बिन तेरे मेरा नाम कहाँ ?
तू है तो ये जग है माता
तू ही मेरी भाग्य विधाता
ऊँगली पकडे साहस देती
दिल धड़के जो धड़कन देती
नब्ज है मेरी सांस भी तू ही
गुण संस्कृति की खान है तू ही
देवी में तू कल्याणी है
प्रकृति पृथिव्या सीता तू है
तू गुलाब है तू सुगंध है
पूत प्रीत ‘माँ ‘ गंगा तू है
धीरज धर्म है साहस तू माँ
लगे चोट मुख निकले माँ माँ
तेरा सम्बल जीवन देता
देख तुझे मै आगे बढ़ता
आँचल तेरा सर है जब तक
नहीं कमी जीवन में तब तक
रश्मि तू सूरज की लाली
बिना स्वार्थ जीवन भर पाली
सारे दर्द बाल के सह के
भूखी प्यासी मेहनत कर के
तूने जो स्थान बनाया
देव मनुज ना कोई पाया
तू मन मस्तिष्क रग रग छायी
पल पल माँ है आँख समायी
आँख सदा बालक पर रखती
पीड़ा पल में जो है हरती
उस माँ को शत नमन हमारा
माँ माँ जपे तभी जग सारा
माँ की ममता बड़ी निराली
तभी तो पूजे जग-कल्याणी
अंत समय तक माँ संग रखना
न हो जुदा दिल में बस रहना
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सुरेन्द्र कुमार शुक्ल ‘भ्रमर ‘५
कुल्लू हिमाचल भारत
११-मई -२०१४
रविवार

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