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मन की बात

Bhramar ka 'Dard' aur 'Darpan'
Bhramar ka 'Dard' aur 'Darpan'
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आओ भ्रष्टाचारी भाई
निज मन में तुम झांको
भारत देश है क्यों कर पिछड़ा
मानचित्र में- आंको
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बदहाली बेहाली शिक्षा
अंधकार घर दूर है शिक्षा
टूटी सड़कें ढहे हुए पल
करें इशारा भ्रष्ट काल-कुल
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छीन झपट कर जोड़े जाते
शीश महल -पर नहीं अघाते
स्नेह गया ना लाज हया
व्यथित ह्रदय मुरझा चेहरा
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भोले प्यारे बच्चे अपने
भाएं अच्छी मन की बात
दुर्गुण करनी तेरी , अपने –
काहे लादें सर पे पाप ?
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‘चोर’ बना जिनकी खातिर
कल काला मुख कर लेप करें
माँ बाप न मानें मै शातिर
मुंह फेर चलेंगे छोड़ तुझे
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ना बो कंटक तू फूल बिछा
क्यों ह्रदय घात फांसी मांगे
सतकर्म करे प्रभु सभी रिझा
पल दो पल जी खुशियाँ मांगे
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ये महल दुमहले माया सब
कब धूल -ढेर माटी मिलते
प्रेम -पुण्य यादें सुन्दर
सतकर्म आत्म जाएँ संग में
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सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर ५
कुल्लू हिमाचल भारत
२६.४.२०१५
२.२० मध्याह्न

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