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मेरी आँखों में झांको तो
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दो चार महीने का बच्चा वो
उस किरण पुंज में झांक रहा है
आभा-रिश्ता-प्रिय-चाहे क्यों??
तिमिर अकेले चीख रहा है
ये किरणे उसके आशा की किरणे लगती
नन्ही स्वप्निल आँखों से देखे जगती
कल का भविष्य कुछ देख रहा है
नन्हे हाथ चलाये सागर तैर रहा है
अनुरागी है प्रेम पिपासा मन में आशा
अंधकार ये समझे ना जो जग में खासा –
व्याप्त ! आज -बदली है सारी परिभाषा
अर्थ-मूल्य-अब -भाव-नहीं अब पहले सा
ऊँगली से गणना करके कुछ जान रहा है
होगा क्या कल चेहरे कुछ पहचान रहा है
घबराहट इस दिल की देखे कुछ हंस देता है
मूर्ख -निमित्त-आया किसके -वो- हंस देता है
इच्छा रख-कर कर्म-सपने तो देखो
ज्ञान -सीख -समता सब में रख -प्रभु को देखो
वही नियन्ता ज्ञान ज्योति हर मन में पैठा
मुझ सा अबोध बन संग में खेलो -देखो-बैठा
हंसा रहा है -रुला रहा है-राग-कभी तडपाये
कठपुतली -हम नाचें बस -सब -वो-ही करवाए
हम सब को भेजा है उसने प्रेम का पाठ पढ़ाने
मेरी आँखों में झांको तो सच या झूठ तू जाने !!
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर५
८.४.२०११
(लेखन १५.६.१९९६ १०.५० मध्याह्न हजारीबाग-झारखण्ड)
आइये आप को हम अपने दर्द से अलग आज बाल- झरोखा दिखाएँ बाल रस हम सब के मन में समां जाये हम बच्चे सा सच्चा मन ले निःस्वार्थ नाच कूद मिल जुल , कभी झगड़ भी पड़ें अगर तो फिर मिल जाएँ
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